ऐसी भी
अपनी जीवन संगिनी की
क्या गुलामी कि
सारे रिश्तों का गला ही रेत दिया
सबको मौत के घाट उतार दिया
इस रूपवती की कुरूपता देखने में
तू असमर्थ था, है और
रहेगा
एक फूल का रस चूसने वाला
तू मात्र एक भंवरा है
कांटों से इस फूल ने किया है
कितने दिलों को लहूलुहान
यह देखने की तेरे पास
कोई दैवीय तो छोड़ो
मानवीय दृष्टि भी नहीं।