जीवन की यात्रा में भी
कहीं पड़ाव आते हैं
कहीं उतार-चढ़ाव आते हैं
कई ठहराव आते हैं
जीवन की गाड़ी के पहिये
कई बार बिल्कुल जाम हो जाते हैं
एक जगह पर रुक जाते हैं
स्थिर हो जाते हैं
इन्हें हिलाने पर भी
इनमें कोई गति नहीं आती
जीवन एक ही धुरी पर टिक
जाता है
इसमें आगे बढ़ने की
आगे की यात्रा पूर्ण करने की
अपनी मंजिल की तरफ कदम
बढ़ाने की कोई तमन्ना नहीं जागती
एक निष्क्रिय अवस्था में
पड़े जीवन को क्रियाशील बनाने के
लिए
इसकी तार को खुद के ही
हाथों से थोड़ा तो हिलाना होगा
इसकी स्थिरता को गतिशीलता में
बदलने के लिए
इसके रुके हुए जल को
कोई नया रास्ता दिखाकर
उस तरफ बहाना होगा
एक नया यात्री बनकर
एक नई यात्रा की शुरुआत
तो स्वयं ही करनी पड़ेगी
इसके लिए सोये पड़े मन को
झकझोर कर
प्रभु का स्मरण करके
खुद में शक्ति भर के
एक हौसले का बिगुल बजाकर
खुद को जागृत करना होगा।