मेरे चेहरे पर एक लालिमा छाई
मेरा मुख लज्जारुण हो गया
रक्त की लाल बूंदे लग रहा था जैसे कि गालों पर से
अब टपकी कि तब टपकी
यह सब क्या था
कोई गुलाल मैंने चेहरे पर नहीं मला था
न ही कोई ब्लशर लगाया था
न ही कोई लाल रंग का पाउडर
यह तो तेरे प्रेम का सूरज
अग्नि के बाण चलाता
मेरी अंखियों के घोड़े पर सवार होकर दिल की बगिया में
मुझसे प्रेमालाप करने चला आया था पहले तो मैं सोच रही थी कि
कोई शिकारी होगा
जंगल में आखेट खेलने के
लिए निकला होगा
लेकिन यहां तो सब कुछ
एक मंगल कार्य सा
संपन्न हो रहा था
कल्याणकारी
मेरा जीवन शायद
एक रक्तरंजित फूलों सा
खिलने वाला था
सिंदूर की होली खेलता
चारों तरफ रंग बिखेरता
सिर की मांग से लेकर
पैर के नाखून तक
सिंदूर का रंग मलता
उसमें नहाता
उससे खेलता।