मैं खामोश हूं
खामोशी से देख रही हूं
अपने मन के उपवन में
खिलते
प्रेम के महकते फूलों को
दुनिया के बनावटीपन से
उकता गई हूं
दूर हो रही हूं इसके तिलिस्म से
मैं और
समा रही हूं अपने ही आगोश में
मुझे मेरा साथ सुंदर लग रहा है
मुझे मुझ जैसा न कोई दूसरा
इस जहां में मिल रहा है
हो सकता है लोग अच्छे भी
होते हों लेकिन
मेरे सम्पर्क में नहीं आये
अब जीवन बचा है थोड़ा
इससे आगे अधिक प्रयोग अब सम्भव
नहीं
जो है मेरे जीवन का
अभी तक का अतीत
वह ही रहेगी मेरी आधारशिला
उसमें बदलाव की अब कोई
गुंजाइश नहीं
मेरा वर्तमान है
मेरा निवास स्थान
मेरा भविष्य है
या तो मेरी खिड़की से
दिखता एक खुला आसमान या
फिर जमीन पर लहराती
मिट्टी की परत दर परत
जो देखा जाये तो मैं ही हूं
मुझे भविष्य कैसा भी हो
सहर्ष रहेगा स्वीकृत
जीवन ने इस मुकाम तक
बहुत कुछ दे दिया
इससे क्या गिला शिकवा
करना
भविष्य को लेकर भी
क्या चिन्ता करनी
जीवित रहने पर
प्रभु जिस हाल में रखेंगे
वैसे खुशी खुशी रह लेंगे
जिन्दा नहीं रहे तो
हवाओं में कहीं खुशबू बन
खो जायेंगे या
जमीन की गर्त में ही
समाकर कहीं
जमींदोज हो जायेंगे
इन दोनों के मध्य की गर हुई कोई स्थिति तो
किसी पेड़ पर लटकी हुई बेल पर झूल रहे पत्तों से ही
रह रहकर मुस्कुरायेंगे।