रिश्तों के बंधन में
स्वतंत्रता थी
घर के बड़े अनुभवी सदस्यों की सिर पर
एक वटवृक्ष सी परछाई जो थी
अब जो यह बंधन खुला है
उनका साथ जो छूटा है तो
तन्हाई है और
आजादी मुंह को आई है
आजादी का अर्थ मैं आज तक समझ न पाई हूं
एक आकाश में उड़ता पंछी आजाद है या
घर के एक कमरे में कैद मैं
घर के बाहर कदम रखने पर
यह भरोसा नहीं कि घर मैं वापस आऊंगी या
मेरा मृत शरीर तो
यह कैसी आजादी है
जहां हर पल मौत सिर पर मंडराती है और
हर कदम जोखिम से भरा होता है
कोई रूह जिस्म के बंधन से मुक्त होती है तो
उसे शायद आजाद होना कहते हैं लेकिन
जिस्म के घर में कैद एक रूह को
जिंदा होने पर भी
क्या आजाद होने की संज्ञा दी जा सकती है
एक पंछी पंख होते हुए भी
फड़फड़ाता रहे
उसे आसमान दिखता हो लेकिन
उसके उड़ने के सारे रास्ते बंद कर दिये जायें तो
यह आजादी तो फिर आजादी नहीं हुई
जब तक मेरा जो दिल चाहे
मैं वैसा न कर पाऊं तो फिर
मैं तन से, मन से, ख्यालों से
कैसे भी आजाद नहीं।