कोई अरमान नहीं: डॉ. मीनल द्वारा रचित रचना


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जिन्दगी जैसे जैसे सामने पड़ रही है
उसे मैं वैसे वैसे ही जी लेती हूं
कोई अरमान अब मन में नहीं
यह जिन्दगी जो मिली है
एक अजब गजब यह पहेली है
यह सरलता, सहजता और सुगमता से गुजर जाये, यह क्या कम है
इससे अधिक की कामना करना व्यर्थ है
खाली हाथ आये हैं, खाली हाथ जाना है
साथ में आखिर कौन सा
सामान बांधकर ले जाना है
जब तक इस दुनिया में है
दुनिया में बने रहने के लिए
न चाहते हुए भी कई खेल खेलने पड़ते हैं
सब कुछ दुनियावी है, एक छल है
एक नजर का धोखा है
सब मिथ्या है, भ्रम है, एक मरीचिका है
यह जिन्दगी का सफर तो एक
भटका हुआ रेगिस्तान है
जिसकी कोई मन्जिल नहीं
ऐसे में किसी अरमानों की सेज सजाना
एक बेकार का काम है।

 


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