चुपके चुपके वो सुनहरे पल वापस लौट के आये हैं,
हम सब खुली हवा में दुबारा साँस ले पायें हैं।
कोमल पंखुड़ियों के कोरों पर ओस की बूँदों का मचलना,
चढ़ती धूप की किरणों से उनका बेबस हो फिसलना।
चिड़ियों की चहकती आवाज़ घोल रही कानों में मधु,
भँवरे की गुंजार पर थिरकती इठलाती पीहू।
गुज़रने लगी बिंदास ज़िंदगी न कोई फ़िक्र न कोई चिंता,
पूरे हो रहे दिल के अरमान मन आसमां में विचरता।
इन बातों से दिल का आँगन फुले नहीं समा रहा,
इंतज़ार था जिस का बरसों से वो लम्हा लौट वापस आया।
वो दोपहर को मिल बैठ दोस्तों से करना गुफ़्तगू,
सूरज की तपती किरणों को तन पर भी करना महसूस।
साथ में चाय की चुस्की विभिन्न पहलुओं पर चर्चा,
हर मुद्दे पे छिड़ गई बहस खोलते हुए नए मोर्चा।
कविताओं का दौर चला उस पर शेरो शायरी थी भारी,
इस मिलन की बेला पर हम सब थे आभारी।
आज के भागते दौर में कुर्सियों पर बैठ के सुस्ताना,
सुकून के दो पल खुल कर सब से बतियाना।
ये आलम इतना हसीं जहाँ साझा करना अपनी ख़ुशी!
जल्द हो मिलन फिर से दिल से मेरी दुआ यही!!