मंदिर में


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मंदिर में

भगवान का वास होता है और

मंदिर न हो तो

भगवान का तो वास तब भी होता है

भगवान तो विराजमान हैं

सृष्टि के कण कण में

वह स्वयं पैदल चलकर आते हैं

अपने भक्तों के घर में बने मंदिर में

रहने के लिए

घर में मंदिर न हो तो

दिल के मंदिर में

खुद की मूर्त को हमेशा के लिए

स्थापित करने के लिए

वह तेरे इस संसार में जन्म लेने से पहले से बल्कि

जब तू था अपनी मां की कोख में

तब से तुझे जानते हैं

तेरे पास तो बार बार वह इसलिये आते हैं

ताकि तेरे विश्वास को

बल मिलता रहे

तुझे अपने पास मंदिर में भी

इसीलिये बुलाते हैं कि तुझे एक

मूर्त के रूप में उनके दर्शन

होते रहें।


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