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तुम बिन: निधि माथुर द्वारा रचित कविता

काश तुम समझ पाते कैसे जीवन लगता है तुम बिन,
अह्सास है,प्यार है,समर्पण है,
पर बिन बोले, अभिव्यक्त नहीं होते तेरे विचार,
ना होने के बराबर ही है,जब साथ ना मिले तेरा,
ना होने के बराबर ही है, जब हंस बोलकर ना कटे जीवन मेरा,
काश तुम समझ पाते, होते हुए भी ना होने का एहसास हो तेरा,
कैसे कटे ये जीवन मेरा तुम बिन,
आये कई संकट, हंस कर टाल दिए हमने,
खुशियां थी अपार, जमाना ना देखा हमने ऐसा कभी,
काश तुम समझ पाते, कैसे कटे ये दिन, रात तुम बिन,
हौंसला चाहिए अपने घरौंदे को बचाने का,
उठकर रोको, टोको, पोषित करो अपने रिश्तो को,
तुम बिन अधूरा है ये रिश्ता, समझो इसकी महत्ता,
हंसते, गाते, मिलजुल कर ही, करेंगे हर पल का इस्तेमाल,
आओ आगे कदम बढाओ तुम,बदलो नियति को बारम्बार,
काश तुम समझ पाते ।।