मैं हूं एक पवित्र आत्मा
होने न दूंगी अपनी पवित्रता को
धूमिल कभी
धूल की कोई परत अपनी आत्मा के अक्स पर
कभी चढ़ने नहीं दूंगी
उसके लिए समय समय पर
करती रहूंगी अंतर्दर्शन
मुझे जीवन भर एक
निर्मल गंगा जल की धार सा बहते रहना है
उसे कभी मैला नहीं होने देना है
इसके लिए मैं मन के मंदिर में हवन
करूंगी
बुरे विचारों की आहुति देकर
खुद की सोच को शुद्ध करूंगी
पाप के घड़े को स्वयं से दूर रखूंगी
पुण्य कार्य करूंगी
उन्हें ईश्वर को समर्पित करूंगी
कभी कोई पाप जानबूझकर नहीं करूंगी
मैं मंदिर कभी जो न जा सकी तो
दिल की अपनी दुनिया की जमीन पर ही
एक विशाल सुंदर मंदिर बनाऊंगी
उसमें सारे देवी देवताओं की मूर्तियों को
स्थापित कर
सांझ सवेरे प्रभु के गुण गाऊंगी
मैं जो कुछ न पा सकूंगी इस संसार में
वह सब अपने भीतर बसे संसार में
भगवान की मुझ पर पर जो बरसेगी कृपा
उससे पाऊंगी
जो बाहर है
वह मन के भीतर भी है
विद्यमान
इस रहस्य को मैं और
गहराई से समझ पाऊंगी
जब करती रहूंगी निरंतर ही
स्वयं का आत्म मंथन
आत्म विश्लेषण
आत्मनिरीक्षण
आत्मपरीक्षण व
अंतर्दर्शन।