हे प्रभु
तुम कहां हो
पुकारती रहती मैं तुम्हें
हर प्रहर
संकट की घड़ी है
डालो मुझ पर अपनी मेहर की
नजर
यूं तो मैंने तुम्हें कभी खुद से
एक पल को भी जुदा
नहीं किया
तुम लेकिन अब आसानी से
मिलते नहीं
पता नहीं क्यों हो गये हो
मुझसे आजकल
एक बालक से खफा
मना लूंगी पर मैं तुम्हें
बहुत जल्द
नहीं लगता मेरा तुम्हारे बिना
कहीं मन
लौटकर आना वापस
जल्दी ही मेरे पास कि
मैं कर रही तुम्हारा हर पल
बेसब्री से इंतजार
प्रभु यह बात किससे छिपी है कि
तुम सर्वशक्तिमान हो पर
यह बात भी तो तुम न भूलो कि
मैं भी तुम्हारा अंश हूं
तुम्हारी संतान
तुम्हारी तरह ही शक्ति की
एक छोटी सी जलती हुई
मशाल
तुम्हारी लौ से ही तो
जागृत है मेरा जीवन रूपी दीपक
तुम चले आओ
कहीं से भी दौड़कर मेरे पास कि
शनैः शनैः बुझ रहा मेरे
दिल की मोहब्बत से रोशन
जीवन का दीपक।