मैं अपने घर में ही
हो चली हूं पराई
अब मैं सिर छिपाने के लिए
पल दो पल राहत पाने के लिए
किसी पर अपना हक जताने के लिए
किसी को अपना मानने की हिम्मत
जुटाने के लिए
किसी को अपनी मोहब्बत के
आंचल में छिपाने के लिए
किससे पनाह मांगू
किसकी शरण में जाऊं
किसके चरणों में स्थान पाऊं
प्रभु के द्वार
प्रभु के घर
प्रभु के मन्दिर लेकिन
मन्दिर के कपाट भी
बंद हो जाते
पूजा अर्चना आरती के
लिए खुलते एक निश्चित
समय
प्रभु के सौम्य रूप के दर्शन भी
होते उसी समय
मैं जब तक मंदिर के द्वार न
खुले
कपाट न खुले
प्रभु दर्शन न हो
पड़ी रहूंगी मंदिर के बाहर ही कहीं
उसकी सीढ़ियों पर
जाऊंगी लेकिन अब उनकी ही
शरण
मैं एक शरणार्थी प्रभु की
प्रभु शरणम् गच्छामि।