तुम्हारा रूप तो
बहुत सौम्य है
तुम सौन्दर्य की हो
एक अनुपम प्रतिमा
तुम्हारा चेहरा जैसे
एक खिलता हुआ
मुस्कुराता कोई लाल गुलाब है
क्या वैसे ही
तुम्हारा मन भी है
आस्था का एक पवित्र मंदिर
तन की सुंदरता तो
समय के साथ
धूमिल पड़ती जाती है लेकिन
यह मन की सुंदरता ही होती है
जो अंधेरी रातों में भी
एक सूरज की रोशनी सी ही
जगमगाती है
सौन्दर्य के जाल में
कोई कभी किसी के न फंसे
न ही उसकी मीठी वाणी से हो
प्रभावित
कोई देखे तो
किसी के मन की सुंदरता
हृदय की कोमलता और
आत्मा की मधुरता देखे
तन का क्या है
वह तो पतझड़ में झड़ जाता
एक सूखे पत्ते सा
पेड़ की डाल से
एक मन है
जो एक फूल सा
मुस्कुराता रहता
चाहे हो फिर
किसी भी हाल में।