आजकल के तनावपूर्ण वातावरण में
उसके चेहरे पर जो मुस्कुराहट
दिख रही है
वह जबरदस्ती की है
प्राकृतिक रूप से बिखरी हुई या
उभरकर सामने नहीं आ रही है
उसमें दर्द बहुतायत रूप से शामिल है
वह बात बात पर
मुस्कुराती है लेकिन
अंदर से पूरी तौर पर टूटी हुई है और
भीतर ही भीतर बुरी तरीके से रो रही है
अपनी दर्द भरी कहानी गर वह किसी को
सुनाये तो शायद
कोई सुनना नहीं चाहेगा और
वह किसी को रास भी नहीं आयेगी
इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि
समाज में आजकल एक
मुहिम छिड़ी हुई है कि
हर कोई प्रसन्न दिखे
सकारात्मक रहे
नकारात्मकता को त्यागे लेकिन
आजकल के
टूटते समाज के दर्पण में
घरों की दीवारों में पड़ती
दरारों में
परिवारों में बढ़ते
मनमुटावों में
घर के कमरे के ही कोने में
तन्हा पड़े किसी आदमी से
क्या कोई उम्मीद बांध
सकता है कि
वह अपने सारे दुख और
तकलीफ को
एक पल को भुलाकर
जरा एक तरह किनारे से उसे सरकाकर
सच में खुलकर
जी भरकर
खिलखिलाकर हंस देगा
एक खिलते फूल सा ही
मुस्कुरा देगा।