सुबह उठी तो
गुलाब की गुलाबी काया पर
छोटे छोटे सफेद मोतियों के कणों सी अंकित
ओस की बूंदों को
अपने गुलाबी होठों के पत्तों से
चूम लिया मैंने और
एक गुलाब जल से ही शीतल
जल का एक पावन सा
अहसास किया मैंने
मन बदला तो
रंग भी बदला होगा मेरे लबों का
रक्तरंजित हो गये होंगे वह
शर्म के लाल रंग से
यौवन मेरी देह में समा रहा होगा
किसी जलते एक शोख चटक
अंगीठी में सुलगते किसी अंगारे की
तरह
एक कली सी खिल रही होगी
मेरे नयनों की सितारे सी
चमक
एक हुस्न की तितली का साया सा
लहरा रहा होगा मेरे दमकते चेहरे
पर
मैं सम्पूर्ण सौंदर्य को प्राप्त हुई होंगी
जब कली से एक फूल बनी होंगी
फूल शनैः शनैः
समय के तेज प्रवाह में
मुर्झा रहा होगा
वह ओस की बूंदें भी कहीं सूख गई
होंगी जो कभी एक सुबह
मेरे गुलाब के गुलिस्तान के
फूलों की गुलाबी रंगत की देह पर पड़ी
थीं।