कामनाओं की दौड़


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इस दुनिया को पीछे

छोड़

मैं कहीं दूर निकल आया हूं

कितने जंगल पार किये

कितने कटीले झाड़ों में उलझा

कितने वार सहे

कितने नुकीले पत्थर भरे रास्तों से

पांव लहूलुहान करे

बर्फीले पहाड़ों की चोटियों को

छू लिया है मैंने

आसमान को एक बहती किसी बड़ी नदिया की

धार की तरह देख लिया है मैंने

जो मैं चाहता रहा जीवन भर

उसे मैंने सहज प्राप्त किया और

सहर्ष उसे स्वीकार किया

जीवन के रास्तों का अंत है

किसी मनुष्य के लिए

कहने को तो जीवन अनंत है लेकिन

उसकी इच्छाओं की कहीं कोई समाप्ति

नहीं

रास्ते थक जाते हैं

एक मंजिल को पाकर

वहीं ठहरना चाहते हैं लेकिन

यह मन है कि

आकांक्षाओं के सपने देखना नहीं छोड़ता

आसमान भी उसके पैरों तले आ

जाता है लेकिन

फिर भी वह चलना नहीं चाहता  

बहना नहीं चाहता अपितु

उड़ना चाहता है

उसकी कामनाओं की दौड़ लगता है

कभी खत्म नहीं होगी

जमीन से आसमान

फिर उसके आगे का आसमान

फिर उसके आगे क्या

यह उसका विजयी मन जो

पराजय स्वीकार करना ही नहीं

जानता

जानना चाहता है

जानने का अभिलाषी है

साधना में लीन

अत्यधिक इच्छुक है।


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