यह कैसी वादी है
जहां एक नीला आसमान है और
उसमें दिख रहे सफेद बादल भी
पहाड़ हैं
बर्फ की एक चादर से ढके
दिखते कहीं से सफेद तो
कहीं से रेतीले तो
कहीं से मटमैले भी
ऊबड़ खाबड़ से
छलनी हो गये हो जैसे इनके
संगमरमरी बदन
ढलते हुए दिख रहे
उम्र में
यौवन में और
सौंदर्य में भी
ऐसा लग रहा
धंस रहे
चरमरा रहे
टूटकर कहीं गर्त में समाने को हो रहे बेताब
जो जहां है
वह वहां है
ऊपर से नीचे आना मुश्किल
नीचे से ऊपर जाना कठिन
शिखर भी इनके नुकीले नहीं
न इनके कोई तराशे हुए
निर्बाध रास्ते हैं
न ही कोई मंजिल
अपने कद से कहीं छोटी बस
परछाइयां सी झांक लेती है
इनके पैरों तले यदाकदा कभी
पानी में भी निहार लेते अपनी
धूमिल छवि जब मिलती खुद की
तकलीफों से फुर्सत कभी
हरियाली से भरे पेड़ों के
झुरमुटों की छत भी है
रेशम के एक कालीन सी
नीले रंग के कंचई जल से
भरा एक जलाशय भी है
इस जादुई नगरी में
सब कुछ है
पर यहां रह पाना नहीं मुमकिन
सांस तो आती है
एक ताजी हवा के झोंके सी
लेकिन
जान जाती है
जमीन दरक रही
पैर रखने को एक टुकड़ा
जमीन नहीं रही
सब कुछ धंस रहा
भीतर कहीं
आशियाना बनाने या
बस्ती बसाने का सपना
इस सुंदर जहां में
कोई देखे तो
इसे देखे कैसे भला।