कोई भी पल
कोई भी शाम यादगार बन जाती है जब
वह अपने परिवार के साथ
अपने दोस्तों के साथ
अपने शुभचिंतकों के साथ
हंसी खुशी गुजारी जाये
मेरे लिए तो वह सारी शामें यादगार हैं जब
मैं अपने बूढ़े और बीमार मां बाप को लेकर
उन्हें घुमाने
उन्हें टहलाने
उन्हें ताजी हवा में सैर कराने
शहर के सबसे बड़े पार्क में खासतौर से लेकर
जाती थी
पेड़ों के झुरमुटों की छाया तले
हौले हौले बढ़ते उनके कदमों से उन्हें चलाती थी
थक जाने पर उन्हें फौरन बैठने का स्थान मिले तो
बेंच से ज्यादा दूर उन्हें लेकर नहीं जाती थी
रास्ते में
मंदिर में बज रही मंदिर की घंटियों को उन्हें
सुनाती थी
सड़क किनारे किसी मंदिर में हो रही
आरती और भगवान के दर्शन उन्हें करवाती थी
कोई जानकर मिल जाये या
खड़े खड़े कुछ देर के लिए किसी के घर या दुकान पर
ले जाकर उन्हें उनसे मिलवाती थी
प्रार्थना करती थी हमेशा ही उनके लिए
छोटे मोटे ऐसे न जाने कितने ही प्रयत्न करती थी कि
उनमें जीने का हौसला बना रहे
वह इतनी जल्दी मुझसे छूटे नहीं
यह सोचकर कि उनकी किसी को चिंता नहीं
वह अब लाचार हैं, बेकार हैं
उनको जीने की अब आवश्यकता नहीं
उनके साथ जो शाम को बैठकर बातें करी
उनके साथ खाया पीया, जो कुछ गुनगुनाया
बस वही सब अब आंखों के सामने तैरता है और
कानों में गूंजता है
वह दोनों कहीं दूर चले गये लेकिन
उनके साथ बिताई वह अनमोल घड़ियां
वह यादगार शामों की ढेर सारी यादें
अब भी मेरे साथ हैं और हमेशा रहेंगी
उन यादगार शामों के लम्हों की कसक ही मुझे
देख लेना जिंदा रखेगी।