कैदी कौन नहीं
इस जहां में
कोई अपने घर में कैद
कोई मुजरिम जेल में कैद
कोई पंछी पिंजरे में कैद
कोई महलों में तन्हा भटकता हुआ सा
अपने रूह की सरहदों में कैद
मेरी या
हर किसी की
आत्मा भी तो है
इस जिस्म के लिबास में कैद
जब हो कोई किसी पर निर्भर तो
वह उसके लिए ही रहता समर्पित और
होता उसी के अधीन
मेरे तंग विचार करते मेरी सोच के दायरे को
संकुचित
मैं हो जाती कभी किसी की सुंदरता तो
कभी उसकी अदाओं या
कभी उसके वैभव या
कभी उसके ज्ञान और कौशल या
कभी उसके पैसे, पद, ताकत और
न जाने किन किन बातों से प्रभावित
मैं कभी खुद की तो
कभी इस दुनिया की गिरफ्त से
खुद को छुड़ाकर हो न पाती स्वतंत्र
कुछ भी अपने मन का नहीं कर पाती
दूसरों के हाथों में कसी डोर से बंधी
एक कठपुतली हूं मैं जो उनके
इशारों पर नाच रही
देखा जाये तो हर तरह से ही एक कैदी हूं मैं
बोलने की मुझे आजादी नहीं
अपने विचारों को खुलकर सबके समक्ष रखने की
मुझे स्वतंत्रता नहीं
पंख होते हुए भी उन्हें फैलाकर उड़ने की
मुझे इजाजत नहीं
जमीन से खड़े होकर आसमान को ताकते रहना ही
मेरी नियति है
कदम आगे बढ़ाने को उठाती हूं पर
पीछे धकेल दी जाती हूं
इस कैद से आजादी तो तभी मिलेगी
जब हर कोई दूसरे को आजाद देखना चाहे
अपनी इच्छाओं को जबरन दूसरों पर न थोपे
अपने तक ही सीमित रहे
दूसरों के लिए एक बाधा न बने
अपने विचारों को ही नहीं
दूसरों के विचारों का स्वागत करने के लिए
एक बड़ा दिल रखे
एक दूसरे को हर कोई प्रेरित करे
उत्साहित करे
सहयोग प्रदान करे
हर कोई इस दुनिया में
अपनी सोच का दायरा
एक आसमान सा ही खुला रखे।