in

ऐ खुदा अगर उस रोज

अगर समय रहते

सब ठीक प्रकार से घटित होता

इसका साथ मिलता

उसका साथ मिलता

सबका साथ मिलता तो

शायद आज की तारीख में

सब सही होता

मेरे मन मुताबिक होता

जो हुआ वह न होता

यह जो कुछ अब मेरे सामने है वह

कोई विधाता का खेला हुआ

खेल नहीं है

प्रभु की इच्छा का परिणाम नहीं है अपितु

यह तो इंसान के दिमाग की

फितरत का नतीजा है

एक इंसान जिसका दिल होता है पर

वह धड़कता बस उनके लिए है

जिन्हें वह अपना मानता है

जिन्हे उसका दिल नहीं स्वीकारता

उन पर तो वह कहर बरपाता है

अत्याचार करता है

उसका दिमाग उनके खिलाफ साजिश

के जाल बुनता है

वह उनके खिलाफ

एक जानलेवा

अत्यंत हानिकारक

बेहद दर्दनाक षड्यंत्र रचता है

खुद तो उसे यही सच लगता है कि

वह जो कर रहा है वह बिल्कुल

ठीक है

जो भुक्तभोगी है

वह उम्र भर दर्द के दरिया में

बहता हुआ चीखता है

चिल्लाता है

तड़पता है

मदद की गुहार लगाता है

हाथ अपने फैलाकर बस

यही दुआ करता है कि

ऐ खुदा अगर उस रोज

तू कहीं छिपा न होता और

अपनी मेहर कहीं मुझ पर बरसा

देता तो

आज मैं जिन विषम

परिस्थितियों से गुजर रहा हूं

उनसे बच गया होता पर

गर मेरे हक में फैसला

तेरी रजा पर टिका होता।