रास्ता तो है
मंजिल भी है
राही हूं मैं इन अंजान राहों का
हाथ में मेरे बंधी
मेरी यादों के सामान की एक
जंजीर भी है
जमीन के किसी भी दिशा का कोई
छोर मेरी मंजिल नहीं
आसमान ही मुझे तो बस दिख
रहा
मेरी आंखों के सामने बरस रहे उसके रंग
मेरे ही सदृश्य
मुझे तो बस उन्हीं से मिलना
उन्हीं के रंग में घुलना
उन्हीं के रंगों से खुद को रंगना
वापिस लौटकर मैं फिर आऊंगा
कभी इस जगह जहां से छोड़े मैंने अपने निशान
इस बारे में अभी कुछ कह पाना
संभव नहीं
मेरा इंतजार करने वाला
मेरी राह तकने वाला
मुझे प्यार करने वाला भी तो
अब कोई नहीं तो फिर
इस बात से मुझे कोई सरोकार नहीं
यह सच है पर मेरे लिए इसका कोई
महत्व नहीं पर
जो कुछ भी घटित हो रहा उसका मुझे कोई
मलाल भी नहीं
मैं हूं यहां या कि वहां पर
मेरा अस्तित्व तो है मौजूद
मेरी यात्रा खुद तक है
मेरी पहचान खुद तक है
मेरे सपनों की मंजिल मैं
खुद हूं तो
बीच रास्तों की अड़चनों की मुझे
फिक्र नहीं
मैं तो एक बादल सा ही आवारा हूं
बेरंग हूं
कहीं भी बरस जाता हूं
आसमान में रहकर भी
जमीन की मिट्टी पर बरस जाता हूं
उसे गीला कर देता हूं
मैं अपने अतीत को नहीं भूलता
जहां से चला था फिर न चाहकर भी
जाने अंजाने वहीं लौट आता हूं।