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एक नया सवेरा

रात के शामियाने से निकली तो

सवेरे की फूलों वाली खुशनुमा

एक चादर ओढ़ी

आंखों में टिमटिमा रहे थे जो

रात के सारे जुगनू

वह पलक झपकते उड़ा दिये

आसमान के पिटारे में बंद कर दिये

सितारों के जहां में ही कहीं उनके बीच

थोड़ी सी जगह बनाकर उसमें बसा दिये

पर्दों की चिलमन हटाकर फिर

मैंने एक नया उगता हुआ

नारंगी सूरज की छटा बिखेरता

सवेरा देखा

मैंने देखा

क्या तुमने भी देखा

क्या सबने इसी देखा

बहुत खुशनसीब होते हैं वह लोग

जिन्हें आंख खुलने पर

एक नया सवेरा देखने को मिलता है

कई बार तो कुछ जिंदगियों को

एक सांझ के ढलते सूरज के बाद

हमेशा के लिए बस अंधकार ही

मिलता है

एक नया दिन

एक नई सुबह

एक नया सवेरा

फिर कभी भी देखने के लिए नहीं

मिलता है।