सौंदर्य की मेरी परिभाषा है कि
तन स्वस्थ हो
दिल एक दर्पण सा साफ हो और
मन जिसका सुंदर हो बस
वही मनुष्य इस संसार का सबसे सुंदर जीव है
किसी का सौंदर्य
उसके यौवन काल में तो
एक कांच के टुकड़े सा पारदर्शी होता है
एक शीशे सा चमकता है
एक फूल सा महकता है
एक चांदनी के बदन सा
एक कलियों के चमन सा
एक चंदन बन सा
किसी की देह में दमकता है
उम्र के साथ साथ पर
यह एक बर्फ की डली सा ही
पिघलता है
सौंदर्य का अहसास कभी होता है
एक बेदाग फूल सा
आहिस्ता आहिस्ता हो जाये
वह बदरंग या
बेजान या बदसूरत तो
क्या हुआ
कल वह मेरा था
आज भी है
समय के साथ हो गया
थोड़ा सा उसका रूप परिवर्तित तो
फिर क्या हुआ।