जिंदगी में एक मुकाम ऐसा भी आता है कि
रात को गहरी नींद आती है
थकान से भरी हुई
बेमकसद जिंदगी का बोझ लिए
बिना कल के किसी सुनहरे भविष्य की
उम्मीद दिल में बांधे हुए
एक गहरी खाई में समाई हुए
काली घुप अंधियारी रात के
अंधियारे की एक दम तोड़ती गली सी
आंसुओं से भीगी कीचड़ भरी
एक सियाह काली स्याही की रात सी
बिना सपनों की
कितनी रातें बीती
एक सपना भी नहीं आया
कोई भूले भटके आया होगा तो
सुबह आंख खुलने पर याद नहीं
सपने देख कर मैं आखिर
करूंगी भी क्या
यह पूरे होते कहां हैं
हो जायें तो भी तो कोई कुछ नहीं
पाता
यह पाना खोना सपने देखना
न देखना या उन्हें भूला देना
यह सब तो जीवन पर्यंत ऐसे ही चलता रहेगा
और एक दिन इन्हीं सब लीलाओं के खेल में झूला झूलते
यह जीवन सच में एक बिना देखा, बिना जाना,
एक अंजाना सा, आधा अधूरा सपना बनकर रह जायेगा।