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दोस्ती का सूरज

दोस्ती

यह तो शब्द ही ऐसा है कि

जिसे सुनते ही कानों में

शहद सा घुलने लगता है

कोई दिल का तार एक पायल सा छनकने

लगता है

मन मस्तिष्क के पटल पर न जाने कितने ही सूरज

एक साथ रोशन होने लगते हैं

न जाने कितने ही फूल एक साथ खिल उठते हैं

न जाने कितने ही दीये एक साथ जगमगा उठते हैं

न जाने कितनी ही स्वर लहरियां एक साथ

सागर की लहरों सी हिलोर भरने लगती हैं

न जाने कैसे एक सोया था उपवन एकाएक

उठकर जाग जाता है

न जाने कैसे आंखों में सपनों के आकाश

उमड़ने लगते हैं

खाली श्वेत श्याम चित्रों में आशा के रंग

भरने लगते हैं

कोई रिश्ता पूर्ण तभी होता है

जब वह एक दोस्त भी हो नहीं तो

वह रिश्ता अधूरा है

यह जीवन एक बियाबान जंगल है

कांटों की सेज है

नितांत अकेला है

नीरस है

थकेला है गर

दोस्ती के सूरज का न इसके चमन में

उजाला है।

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