घर के बाहर कितना
शोर है
कितनी रौनक है
कितनी हलचल है
एक मेरा घर ही है जहां
जिधर भी नजर दौड़ाओ
बस खामोशी ही खामोशी पसरी है
पक्षियों को देख लो
चाहे पशुओं को
वह भी लगता है
जिंदगी छोटी सही पर
उसे जीते हैं
हर उत्सव में शामिल होते हैं
उनका तो कोई घर भी नहीं
यूं ही इधर उधर मारे मारे फिरते हैं
फिर भी सबके साथ मिलकर कितने
खुश रहते हैं
खामोशी की कोई तो वजह होनी
चाहिए
यूं ही बिना बात तो खामोश नहीं हो
जाना चाहिए
पहले तो खामोशी की चादर नहीं ओढ़ी
थी तो
अब क्यों ओढ़ ली
खामोशी से लगता है
सदा के लिए मैंने दोस्ती कर ली
एक बंदगी कर ली
दिल्लगी कर ली
खामोशी से हासिल तो बहुत कुछ
होता है लेकिन
बिना किसी कारण हमेशा खुश भी
रहना चाहिए और
हर पल को हंसी खुशी
एक उत्सव की तरह जीना
चाहिए
चाहे बेशक शोर मचाकर नहीं
उम्र के ढलते हुए पड़ाव पर
खामोश रहकर ही सही।