क्षितिज


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पहले कभी

मन में एक प्रबल इच्छा होती थी कि

यह जमीन छोड़ दूं और

आसमान में

सितारों की दुनिया में ही कहीं अपना

बसेरा कर लूं लेकिन

अब जी में आता है कि

यह जमीन और

उस पर लहराती

हवाओं संग इठलाती

फूलों की वादियां छोड़ दूं

आसमान में बसने का ख्वाब भी

त्याग दूं और

उस रेखा पर चलूं जहां

धरती और आकाश दोनों मिलते से

प्रतीत होते हैं

देखना चाहती हूं कि

इस तथ्य में कितनी सच्चाई है

यह केवल दिखता भर है कि

यथार्थ में फलीभूत होता भी है

यह मिलते हैं कि

जुदा होते हैं लेकिन

मैं तो अब इस रेखा पर ही

अपना आशियाना बनाऊंगी या

हो सका तो फिर

क्षितिज के पार जाऊंगी और

अपने ढेर सारे खट्टे मीठे

हर तरह के अनुभव जो

मैंने अब तक के जीवन के सफर में

जमीन पर रहते हुए और

आसमान पर रहने के ख्वाब देखते हुए

समेटे हैं

उन पर आधारित अपनी ही दुनिया

जो मेरे अनुरूप हो

मेरे रहने लायक हो

मुझे खुद में समाहित करने की

क्षमता रखती हो

बनाऊंगी

और हमेशा के लिये

खुशी खुशी वहीं बस जाऊंगी।


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