लम्हें प्यार के
बहुत सारे थे और
अभी भी काफी हैं
उन्हें सागर के तट पर
पड़ी सीपों की तरह ही
अपनी झोली में भर भरकर
खूब दिल खोलकर समेटा है
वही तो बन गये है अब मेरे जीने की वजह
बहुत खास
प्यार के इन बेशुमार लम्हों को
कई बार किसी की काली नजर
खा जाती है
इन पर कुछ समय के लिए
एक ग्रहण सा लग जाता है
काले बादलों का एक बहुत बड़ा
जखीरा इन्हें ढक देता है
लेकिन मेरे सब्र का फल
हमेशा मीठा होता है
लम्हें प्यार के
फिर उग आते हैं
कलियों से फूटकर
फूल बन जाते हैं
अपनी महक से
मेरी रूह
चारों दिशाओं और
फिजाओं को
हमेशा की तरह ही
महकाते हैं।