मेरे सामने
उभरते हैं
पथ तो कई पर
उनपर चलता
मैं राही एक
राह तो कोई इनमें से
एक ही चुनूंगा
एक ही समय
एक साथ
इन सारे रास्तों पर फिर भला
कैसे चलूंगा
मंजिल का सितारा दूर है और
सांझ का सूरज तो डूबने वाला है
रात हो जायेगी तो
चांद की रोशनी के सहारे ही
धीरे धीरे
हौले हौले
आहिस्ता आहिस्ता
अपना सफर तय करूंगा
प्यास लगी तो
किसी पानी से लबालब भरे
घाट पर बैठ जाऊंगा
आंखों में नींद बिल्कुल नहीं
भंरूगा
न थकूंगा
न हारूंगा
मैं हौसले से भरा एक परिंदा
पंख भी कोई गर काट देगा
तब भी एक ऊंची उड़ान ही
भंरूगा।