मैं मौसम की बात नहीं कर रही
मैं खुद की कहानी बता रही हूं
मेरे दिल के दरख्त की एक आखिरी टहनी
सूख रही है
बागों में बेशक हो मौसम बहारों का लेकिन
मैं पिछली न जाने कितनी सदियों से
एक पतझड़ के मौसम से जूझ रही हूं
उसकी मार बदस्तूर लगातार झेल रही हूं
मैं खुद में हूं एक फूल सी कोमल लेकिन
न जाने क्यों बहारों की रूत मुझपर
मेहरबान नहीं होती
पतझड़ से मैंने शायद कुछ ज्यादा ही गहरी
दोस्ती कर ली है कि
इसकी जगह मेरे दिल में भरी रहती है
कभी खाली नहीं होती
फूलों तुम नहीं खिलना चाहते
मेरे दिल के उपवन में तो मत खिलो
मैं तुम्हें इसके लिए बाध्य नहीं करूंगी लेकिन
ओ मेरी प्यारी सी छोटी सी चिड़िया
तुम तो मेरे मन की व्यथा समझो
तुम तो आ जाओ कहीं से उड़कर
मेरे कमरे की खिड़की तक या
मेरे दिल के पेड़ की एक सूखी
डाल को हरी करो।