मेरे हाथ में
चार अंगुलियां और एक अंगूठा है
यह पांचों मेरे विश्वास के प्रतीक हैं
प्रथम अंगुली मैं स्वयं हूं
मुझे सबसे अधिक खुद पर विश्वास है
लोग पता नहीं क्यों पर कोशिश करते रहते हैं कि
आपका स्वयं पर से विश्वास उठ जाये पर
मुझे संभाल लेती हैं
दूसरी और तीसरी अंगुलियां जो
मेरे माता पिता हैं
इनका स्थान मेरे हृदय में सबसे ऊंचा है
आकाश से भी ऊंचा और विशाल
चौथी अंगुली मेरे गुरु हैं
मेरे धर्म गुरु
जिन्हें मैं मन ही मन अपना आराध्य
मानती हूं
उनकी शिक्षा को ग्रहण करती हूं निरंतर और
उपयोग में भी लाती हूं
यह पांचवा या आखिरी जो अंगूठा है
यह मेरे ईश्वर हैं
भगवान हैं
खुदा हैं
चाहे किसी भी नाम से पुकार लो पर
हम चारों के विश्वास को साधने वाले
कभी न डिगाने वाले
हम कहीं गिर रहे हो तो आगे बढ़कर
हमें संभालने वाले
यह हम चारों के विश्वास के रक्षक हैं
इनका एक अलग महत्व है, स्थान है तभी अलग से स्थापित है
अपनी मुट्ठी को भींचकर बंद करती हूं तो यह मेरे विश्वास की ताकत है।