नदी
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी सच्ची हो
एक दर्पण की तरह तुम्हारा दिल साफ है
तुम्हारा जल साफ सुथरा और स्वच्छ है
तुम शांत हवा के वेग के साथ
बहती रहती हो तो
कितनी मनभावन लगती हो
तुम्हारे किनारों पर कितनी भी होती
रहे हलचल पर तुम स्थिर रहती हो
तुम्हारे किनारे पर ही उगी
हरी मुलायम दूब पर बैठा मैं
तुम्हें अक्सर ही ताका करता हूं
तुम्हारी आंखें कहां हैं
बहती है या रोती है या मुझे देख
मुस्कुराती हैं
मैं अक्सर ही उन्हें खोजा करता हूं
मैं यह मानकर चलता हूं कि तुम भी
मुझे चोरी छिपे कहीं से भी देख ही
लेती होगी
तुम्हारे सीने पर
कोमल हृदय पर
कोई भार न पड़े इसीलिये
मैं कभी किसी छोटी सी नैया में भी
अकेला उस पर
फिर तुम पर सवार
नहीं होता हूं।