चारदीवारी को
घर नहीं कहते
जहां हो हर समय
किसी का अपमान और
खिड़की, दरवाजे खुले होने पर भी
सांस न आये
उसे घर नहीं कहते
कभी कभी लगता है
मुझसे अच्छा तो
एक पंछी है जो
जिस पेड़ पर चाहे
अपना आशियाना बना सकता है या
किसी भी जगह बैठकर
पल दो पल के लिए सुस्ता
सकता है
अपने ही घर में
घर के लोग
आपको पराया महसूस करायें
रहने न दें
घर से बाहर निकालने की
साजिश करते रहे तो
कोई कहां जाये
भगवान के मंदिर
सड़क पर
किसी आश्रम में या
फिर अपने दिल की
किसी भटकी हुई एक गली तक
और उसे थोड़ा साधा जाये
स्थायित्व दिया जाये
समझाया जाये कि
अपने घर में
पूरे मान सम्मान से रहो
खामोश रहकर
अपना काम करो
खुद से बातें करो
जो तुम्हें घर से निकालने की
बात कहें
उन्हें ऐसा न हो
भगवान दुनिया से ही
बाहर उठाकर फेंक दे लेकिन
ज्यादा उलझो नहीं
मन को शांत रखो
कोई तुमसे लाख बुरा
व्यवहार करे
उन्हें नासमझ मानकर
माफ करते चलो
उनसे एक उचित दूरी रखो
कम बोलो
ऐसे लोगों के मुंह न लगो आखिर
अपनी इज्जत अपने हाथ है लेकिन
घर में रहने के लिये
जीने की कला सीखना तो
आज के समय में लगता है
अति आवश्यक हो गया है।