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सच्चा आनंद

आदमी एक ही होता है पर

हर पल उसके रंग अलग

रूप अलग

भाव अलग अलग होते हैं

कभी किसी बात पर वह

हर्ष से भर जाता है तो

अगले ही क्षण हतोत्साहित सा

महसूस करता है

सुख और दुख,

खुशी और गम का अनुभव भी

कभी कभी एक साथ ही

कर रहा होता है

उसे सच पूछो तो

खुद में ही नहीं पता होता कि

वह क्या कर रहा है

क्यों कर रहा है

इसका महत्व क्या है

इससे हासिल क्या है

इस पर उसका नियंत्रण

क्यों नहीं है

वह कभी एक बच्चे सा

आनंदित हो जाता है

कभी एक टूटा हुआ दिल

लेकर

एक आवारा बादल सा

इधर से उधर

उधर से इधर मारा मारा भटकता

फिरता है

ठहरता एक किनारे की तरह

वहीं है जहां

उसे सच्चे आनंद की

प्राप्ति हो

वह खुश हो और

हर्ष से प्रफुल्लित हो और

वह स्थान तो शायद फिर

ईश्वर के चरण ही होते हैं।

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