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भक्ति

अपने प्रभु के प्रति

भक्ति

दिल में होती है

इसके लिए किसी

दुकान को सजाने की

आवश्यकता नहीं

प्रदर्शन की जरूरत नहीं

आडंबर की अनिवार्यता नहीं

किसी पूजा स्थल पर जाकर

चढ़ावा न भी चढ़ायें और

सबसे पहले अपने मां बाप की

सेवा करें

उनका सम्मान करें

उन्हें समय दें

अपने परिवार को महत्व दें

उनकी जरूरतों का ख्याल करें

उनके मनोबल को गिराये नहीं

उनकी यथासंभव मदद करें

इतना भर करना भी

भक्ति ही है

किसी भी कार्य को

श्रद्धापूर्वक करना

भक्ति ही है

पूजा पाठ में धन,

समय, ऊर्जा आदि लगाकर

अपने परिवार के हितों की

रक्षा न करना

कोई भक्ति नहीं

मां बाप प्राण त्याग दें

उन्हें अनदेखा कर

भगवान के चरणों को

पकड़कर बैठे रहना

कोई भक्ति नहीं

भगवान तो अपने भक्तों से

खुद की भक्ति

कराकर नहीं अपितु

मानव सेवा,

जन कल्याण और

समाज कल्याण जो करें

उसके भक्ति भाव से

अधिक प्रसन्न होंगे।