मेरी आंखों के आंसुओं
तुम कहां चले गये हो
कौन सा आकाश है
जहां तुम बादलों की तरह उड़कर
चले गये हो
वह आकाश भी लगता है
जैसे कोई रेगिस्तान है
जहां सूखा पड़ता है
वहां जाकर बादल कहीं खो जाता है पर
बरसता नहीं है
आंसुओं ने भी सीख लिया है
अब तो हुनर जीने का
अपने ही सारे आंसुओं को पीकर
मंद मंद मुस्कुराता है
अपने सीने की तिजोरी में
दुनिया भर के राज छिपाता है
किसी को कुछ नहीं कहता
किसी से कुछ नहीं मांगता
किसी से कोई अपेक्षा नहीं करता
अपनी ही किसी राह पर
यह तो अकेला पड़ गया है
आंसू तुम अनमोल हो
अब कभी मेरी आंख से मत
बरसना
तुम्हारा मोल कोई समझेगा
नहीं
तुम बन जाओ
एक सीप की कोख में छिपा
मोती कोई और
मेरे अंतर्मन को चमकाओ
मुझे यह विश्वास दिलाओ कि
मैं भी किसी पारस से
कम नहीं
आंसू हरदम न बहाकर
एक दर्द की नदी के
कभी संग
कभी किनारे
कभी सहारे बहते हुए
मुझे अपने छोटे से जीवन में
कुछ महान कार्य भी करने हैं।