दर्द तो
दिल में बहुत है
दिल में
दर्द की एक गली है
उसमें मेरा एक
दर्द की मिट्टी से बना ही
घर है
उस घर में रहती मैं
चुपचाप
अकेली
एक कोने में पड़ी
तन्हा
दर्द से बेहाल
न रोती, न हंसती
बस दर्द की बारिश में
भीगती रहती
दर्द पर एक दवा भी है
दर्द सीने में न हो तो
वह आदमी पत्थर है
इंसान नहीं है
दर्द दिल में जो पाले
वही दूसरे के दिलों का हाल भी
जाने
जो गुजरे दर्द की हदों से
वही दूसरों के दर्द की इंतहा को भी
पहचाने
दर्द कई बार दुख नहीं
सुख ज्यादा देता है
यह जिंदगी को हौसले से
जीने की हिम्मत देता है
दर्द की नदी बहती रहे तो
दिल की किश्ती भी
इसके सहारे चलती रहती है
नहीं तो यह एक लकड़ी की
टहनी सी टूटकर
इधर उधर बिखरकर
यहीं कहीं
बेजान लाश सी पड़ जाये
पत्ता पत्ता
एक दर्द की नदी के
किनारे ही
सूखकर
चारों तरफ फैलकर
घुट घुटकर मर जाये।