दुख में
सुखी होकर जीना भी
एक कला है
चेहरे पर खिली मुस्कुराहट से
सब लगते सुखी
उतरो गहरे उनके मन में तो
हर कोई
किसी न किसी बात को लेकर
परेशान और दुखी
सुख और दुख
दो पक्की सहेलियां हैं जो
उम्र भर साथ साथ ही रहती हैं
एक गर आंखों से दिख जाती है तो
दूसरी कुछ देर के लिए कहीं
छिप जाती है लेकिन फिर
एकाएक कहीं से बाहर निकलकर
सामने पड़ जाती है
उजागर हो जाती है
दोनों एक दूसरे के बिना
जीवित नहीं रह सकती
दुख न देखा हो तो
सुख का अर्थ समझ नहीं
आता
सुख न भोगा हो तो
दुख का पहाड़ जो टूटा सिर पर
वह कितना है बड़ा
यह अंदाजा नहीं हो पाता है
जीवन में सुख अधिक मिले या
दुख की हो प्राप्ति
समय तो जैसे तैसे हर किसी
प्राणी का इस धरती पर कट ही
जाता है
जब एक जीवात्मा
इस संसार को छोड़कर
परलोक को विदा होती है
तब तो न उसके साथ
सुख जाता है और न ही दुख
वह तो बस खाली हाथ लटकाये
हमेशा के लिए चला जाता है
अब उसको याद कर
कोई दुखी होता है या
उसके मरने से होता है सुखी
यह तो वह जाने
मरने वाला तो सुख दुख का
त्याग करके
अपने साथ बांधकर कुछ नहीं
ले जाता है।