हे मेरे कृष्णा
आसमान के रंग के
सागर के विशाल मन से
तुम हो तो मेरे पास ही कहीं पर
तुम्हें मैं कैसे पाऊं
तुम्हारी आराधना करूं मैं
प्रतिदिन
हर प्रहर
हर पल
हर रात
हर दिन
यह आसमान में कौंधी
बिजली
एक तुम्हारे नील वर्ण सी
नीली तरंग के तीर सी
बिजली
यह तुम ही थे न
वर्षा के रूप में
बरस गये मेरे आंगन में
मुझे प्रेम की वर्षा का आनंद
देते हो
हे प्रभु
तुम अपने साक्षात दर्शन नहीं देते
मुझे पर
तुम कण कण में विराजते हो और
अपनी मौजूदगी का मुझे
हर क्षण ही अहसास कराते हो।