पेड़ घनेरे
तेरी जुल्फों से
दरख्त के तने
तेरे तन की एक सुंदर आकृति से
हर मौसम
एक उत्सव सा मन जाये
साथ जो इस दुनिया के वीराने में
तेरा मिल जाये
तन की इमारत में
मन की बंद खिड़की खुल जाये
तेरी चितवन के साये का
उसे एक पल के लिए भी जो
दीदार एक अनमोल उपहार
स्वरूप मिल जाये
जंगल से एक कोयल उड़कर
चली आये
तेरे पैरों में पायल बांधकर
उसके घुंघरुओं को बजाये
तू जिस राह से गुजरे
वहीं ही आसपास के
किसी मकान की छत के छज्जे पर बैठकर
एक प्रेम धुन तुझे सुनाये
जिसका हाथ हो तेरे हाथों में
सौंप दे जिसे तू अपना जीवन
अपनी मुस्कान
अपना तन मन
उसकी तो हर बात बन जाये
जिंदगी ही संवर जाये।