इस संसार से
कब तक कौन बंध पायेगा
हर कोई एक अजनबी है यहां
खुद के मन को कभी टटोलकर देखना तो
समझ आयेगा कि
तुम स्वयं को लेश मात्र भी नहीं
जानते
खुद को नहीं जान पाये तो
दूसरों को भला क्या जानोगे
यही सच है
यह जीवन क्षणभंगुर है
इतना छोटा है
समय हाथ में इतना कम होता है कि
खुद को या
इस दुनिया को जान पाना
एक असंभव सा कार्य है
रूह का परिंदा जिस्म की कैद में
रहता है
जब यह उसकी कैद से आजाद
होकर
उसे हमेशा के लिए छोड़ देता
है तो
एक ऐसा अजनबी बन जाता है
जो शायद कभी उसके
दिल के सबसे करीब था
उसका जीवन था
उसके लिए सांसे भरता था
कोई अपना
पलक झपकते ही
एक अजनबी बन जाता है और
एक राह चलता अंजान
आपका दोस्त
आपका हमदर्द या
आपका हमसफर बन जाता है
एक अजनबी नहीं रहता
कुछ समय तो जीवन का
व्यतीत करा ही देता है
जितना कठिन जीवन को
समझना है
उतना ही मुश्किल है
किसी अजनबी को परिभाषित कर पाना
या उसे शब्दों में पिरोकर
कोई सही आकार दे पाना।