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हमारी प्रेम कहानी

फूल जब खिल रहे हैं

हमारे घर के उपवन में तो

हमारे दिल की बगिया में फिर

प्रेम के फूल क्यों न खिलें

लब वही, हमारी मुस्कुराहट वही

मेरी अदा वही

तुम्हारी लज्जा वही

हम थे मोहब्बत की जिस राह पर खड़े

आज भी वहीं हैं खड़े

मोहब्बत का जज्बा आज भी बरकरार है

कहीं से भी वह कम नहीं

मेरा दिल आज भी जवां

तुम्हारा हुस्न आज भी शोख

मैं एक फूल तुम्हें देता  

तुम्हारे वस्त्रों के रंग से ही मिलता जुलता

पीला

सुनहरी एक सूरज सा

बसंती एक फूलों की बहार सा

तुम्हारी हंसी यह कहती है  

बिना बोले यही कि

तुम्हें मेरा प्रेम करने का

सलीका आज भी भाता है

यूं ही तो नहीं चली हमारी

प्रेम कहानी

सदियों से लम्बी  

इसमें छिपा है जो समर्पण भाव

उसकी खुशबू तो आज भी

हम दोनों के मन के घर आंगन को

महकाती है।