छत पर जाना था
सीढ़ी चढ़ रहे थे
खुश थे
अचानक फिसल गये
गिर पड़े
चोट लगी
बिस्तर पर पड़ गये
रो रहे और दुखी हो रहे
समय के साथ होने लगे ठीक
चेहरे से पीड़ा के भाव कुछ कम होते दिखे
जीवन एक दिन फिर से वापिस पटरी पर लौट
आया और
हो गया सामान्य
फिर पिछला सब भूल गये और
वर्तमान में रम गये और
हंसने लगे
खिलखिलाने लगे
गम को कहीं एक कोने में रखकर
जिन्दगी को फिर से चाहने लगे
जीवन है तो
सुख तो कभी दुख
यह सब तो चलता रहेगा
सुख का अहसास भी तभी होगा जब
दुख हम पर पड़ेगा और
फिर हमें जो छोड़ेगा
दिन के उजाले के बाद
सांझ में सूरज का ढलना
फिर रात का अंधेरा
उसमें चांद की चांदनी का बसेरा
रात के बाद दिन के सूरज का उदय होना
यह सब प्राकृतिक है
सामान्य है
जीवन का पहिया ऐसे ही चलता है
यह ऐसे नहीं चला तब भी
देख लेना जीवन बोरियत से भर जायेगा।