सावन की रिमझिम फुहार
पेड़ की डाली पर पड़े झूले में झूलते हुए
मेरे साजन मुझे रह रहकर
बहुत आयें याद
आसमान से उतरकर जैसे आ गई
बारिश जमीन की सतह तक
वैसे तुम भी चले आओ
पलक झपकते ही
मुझे और न सताओ
बिना बात न भटकाओ
बारिश के पानियों सा ही मत रुलाओ
मुरझाये होठों पर मेरे खिलते हुए कंवल खिलाओ
भंवरे से ही फिर उस फूल
पर मंडराओ
कोई गीत वफा का मेरे कानों में
एक भंवरे की गुंजन सा ही गुनगुनाओ
मत शरमाओ
अति शीघ्र सावन की पहली बौछार से ही
मेरे पास चले आओ।