हर आने वाला पल
आता है
चला जाता है
जैसे ही आता है
वैसे ही चला जाता है
इसका आना
फिर जाना
आना फिर जाना
जाना फिर आना सा
हो जाता है
समय का यह बहता
दरिया तो हाथ में
आ ही नहीं रहा
मैं इसके साथ बह रही हूं
या यह मेरे साथ
यह भी लाख समझने पर
समझ नहीं आता है
पलों के धागे इसमें
कहीं किनारे पर सूखे
तो कहीं इसमें डूबे हुए
गीले से पड़े हैं लेकिन
इन्हें पकड़ पाना भी
नामुमकिन सा लग रहा है
समय के कवच में
बंद यह जीवन एक
सच्चे मोती सा ही
बाकी सब है मिथ्या
यह तो कुछ कुछ समझ
आता है।