सपने मैं देखती तो बहुत हूं पर
आंख खुलने पर कुछ भी याद नहीं रहता
कभी कभी कुछ धुंधला सा
पकड़ने को होती हूं पर
अक्सर ही यह मेरे हाथों से छूट जाया करता है
सपने तो एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं
यह जो नहीं तैर रहे होते
पलकों की चिलमन पर तो
सच के धरातल को ही अक्सर हम
अपने समीप पाते हैं
खुली आंखों से देखने पर
यह जिन्दगी भी मुझे तो एक
सच होते सपने सी लगने लगी है
बंद आंखों से
जो देखो ख्वाब
वह तो एक हकीकत से परे
खुद पर ही पड़ रही हो जैसे कोई
मार सी लगने लगी है
एक अच्छे और भले मानस को
मैं तो अब यह मानने
लगी हूं कि सपने देखने का
अधिकार ही नहीं होना चाहिए
सच का जब होगा सामना तो
उसका दिल टूट जायेगा
एक सपना भी जब साकार होते नहीं
देखेगा तो
उसका हृदय कांप जायेगा
हो सकता है
इस दुनिया में कोई जगह ऐसी भी हो जहां
अच्छे लोग रहते हों
जहां सपनों के चमन खिलते हों
जहां सपने फलीभूत होकर साकार
होते दिखते हों
जहां सपनों को अपनी उड़ान और
मंजिल मिलती हो
जहां सपनों को प्रोत्साहित करने
वाले
पीठ थपथपाने वाले लोग मिलते
हों
ऐसा सम्भव होगा
यह भी तो एक सपना सा
ही प्रतीत होता है
सपने कौन नहीं देखना
चाहता
सपनों की दुनिया एक बहुत
बड़ी दुनिया है
एक सपने ही हैं जो किसी के
अपने हैं लेकिन
दिल खुद को रोक रहा है कि
सपने मत देखो
उन्हें रौंद दिया जायेगा
एक भय
एक आशंका
एक अविश्वास की स्थिति
जब मन में समाती है तब
सपनों का हश्र यही होता है
क्या अच्छा हो जो कोई
सपनों को तोड़े वह खुद टूट जायें या
कहीं दूर चला जाये
सपनों की दुनिया में उसका
प्रवेश वर्जित हो जायें
वह पल ही फिर शायद ऐसा
होगा कि
सपनों को मिलेगा नया जीवन और
वह हो जायेंगे पुनर्जीवित।