सिर से पांव तक
प्रेम के भाव से लबरेज मैं
सपने में भी प्रेम को ही देखूंगी
उसे ही पाना चाहूंगी
उससे अछूती कैसे रह जाऊंगी
मेरे लिए तो प्रेम ही जीवन है
हर किसी को प्रेम करना,
प्रेम देना, प्रेम लेना
बस ले देकर यही कार्य तो
आता है मुझे
प्रेम किसी को करना कितना सरल है पर
यह हर किसी को आता कहां है
प्रेम की कमी से ही तो
इस संसार में तरह तरह के
मानसिक विकार व विकृतियां
मनुष्यों में जन्म ले रही हैं
यथार्थ में नहीं तो सपने प्रेम से
परिपूर्ण देखने लगे गर यह जग तो
सपने की निद्रा भंग होते ही
किस रोज पलक झपकते ही प्रेम
करना सीख जायेगा
यह सच वह खुद भी कभी समझ नहीं पायेगा।