शाम होने पर
ढलता है जो सूरज और
प्रकाश के संग उसके चले जाने से
होता है जो अंधेरा तो
सड़क किनारे लगी बत्तियां
झिलमिला उठती है और
हो जाता है फिर से
एक नया सा आधुनिक सवेरा
मन में एक चाहत जागृत होती है
उन रोशनियों की भीनी भीनी
सुगंध में नहाने की
उनके नीचे खड़े होकर
उनसे लिपट जाने की
उनकी किरणों के जाल में कहीं
एक मछली सा फंस जाने की
थोड़ी देर में निकलेगा आसमान में
जो एक तारे सा टिमटिमाता चांद
उसे भी अपलक निहारने की।