एक आसमान में उड़ती
एक नन्हीं चिड़िया को देखती हूं तो
सोचती हूं कि
क्या यह आजाद है
उसके चारों तरफ की
परिस्थितियां तो
आजाद अवश्य ही दिखती हैं पर
क्या वह आजाद है
बारिश में भीगने का उसे
डर है
कोई बाज उस पर झपट्टा
मारकर उसे मौत के घाट
उतार देगा
इस अनहोनी घटना का उसे
खौफ है
बादलों के बीच
उसका कहीं दम घुट जायेगा
इसका भी उसे भय
सताता है
बिजली की गर्जना से
उसकी ह्रदयगति रुक जायेगी
इसका खतरा भी
उसके सिर पर मंडराता
घूमता है
इस छोटी सी जान के
मन में कितने
बेहिसाब
जाने अंजाने
डर समाये हुए हैं
बिना बात
कोई जानता नहीं पर
कितनी भयभीत है यह
कितनी शंकाओं से
घिरी है
न जाने कितनी ही दुविधाओं से
ग्रस्त
आजाद है पर
भयमुक्त कहां है
कहीं से कोई अंकुश न होने पर भी
मन रहे गर खौफजदा तो
फिर परिस्थितियों का
महज आजादी देना
कोई आजादी नहीं
अपनी ही भय की बेड़ियों को
तोड़कर
जिस दिन आ पायेंगे
बाहर
और भयमुक्त होकर लेंगे
खुली हवाओं में
खुलकर सांस
उस दिन ही
मनायेंगे
आजादी का जश्न
और दिल खोलकर
यह स्वीकारेंगे कि
आज मन में कोई
भय नहीं
हम दिखने भर से नहीं
सच में महसूस कर रहे
जैसे हों एक आजाद पंछी
हम आज सच में
आजादी मना रहे और
सच में है
आजाद।