सुनो डाकिये
जरा रुकना
मैं दौड़कर बस आ रही हूं
तुम्हारे पास
क्या लाये हो
क्यों पूछ रही हूं भला मैं यह सवाल
तुमसे
और भला क्या लाये होंगे
एक खत होगा
उसमें लिखा कोई पैगाम होगा
खुशी का या
दुख का
क्या पता क्या समाचार होगा
यह खत मेरे घर के पते पर बेशक है लेकिन
क्या मालूम
मेरे नाम होगा या किसी और के
नाम होगा
किसी और का लिफाफे पर
नाम होगा तो मैं तो उसे
छूने की या खोलने की गुस्ताखी
नहीं करूंगी
मार नहीं खानी फिर मुझे
वैसे यह खत कोई औपचारिकता
वाला ही होगा
प्यार आजकल कहीं है ही कहां
घर की चारदीवारी में नहीं है
खत में या उसके पैगाम में भला
क्या होगा
प्रेम पत्र लिखने का समय किसके
पास है
दो शब्द प्रेम के लिखने से
भी सब कतराते हैं
लिखना तो दूर की बात है
मुंह से बोलते भी नहीं
आंखों से भी कुछ कहते नहीं
यह डाकिया थोड़ा सा रुक कर
मुझसे बात करेगा
चाहे कैसी भी बिना
कोई प्रेम झलकाये या
दर्शाये या
मेरे हाथों में कोई फूलों का गुलदस्ता या फूल पकड़ाये
देखती हूं पर आजकल का
माहौल देखते हुए इस पर भी
संशय है मुझे।